जो कंपनियां अल्प समय का विचार करके अपने निर्णय लेती है, उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। लम्बे समय की सोच रखनेवाली कंपनियां कम होती हैं। वहाँ ज्यादा प्रतिस्पर्धा नहीं होती। पांच से छह किलोमीटर के ड्रीम रन
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मार्केट में प्रतिस्पर्धा हो वह अच्छा है। प्रतिस्पर्धा हमें सतर्क रखती है। दूसरा, सभी ग्राहकों को एक ही प्रोडक्ट पसंद आए यह भी संभव नहीं है। अलग-अलग ग्राहकों को अपने टेस्ट, बजट और आवश्यकता के अनुसार विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट के विकल्प
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मार्केट में कुछ नया देना है? कुछ अलग करना चाहते हैं? तो विफलता से डरो मत । किसी के भी सभी प्रयास सफल नहीं हो सकते । कहीं कहीं गलतियाँ भी हो सकती हैं। लेकिन नए आविष्कार करने के अलावा ओर
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बिज़नेस के निर्णय लेते समय हमेशा लंबे समय का विचार करें । अल्पकालिक लाभ से शायद शॉर्टकट मिल भी जाएगा, लेकिन आगे जाकर वह महंगा पड़ेगा, ओर पछताना पड़ेगा। लंबे समय की सोच लंबे समय में फायदा कराएगी । पछताने
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जीवन और बिज़नेस में सफलता के लिए दो आवश्यक बातें: 1) किसी एक चीज पर संपूर्ण ध्यान केन्द्रित करके उसे पूरा न्याय देना और 2) अपने समय का बहुत सावधानी से उपयोग करना ।
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सही निर्णय भी अगर सही समय पर ना लिया जाये, तो वह भी गलत साबित हो सकता है। बिज़नेस में निर्णय समय पर लेने की आवश्यकता होती है। निर्णय लेने में कोई अनावश्यक देरी न हो यह ध्यान में रखें
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कई बिज़नेस की विफलता का एक प्रमुख कारण होता है: अन्य लोगों के साथ काम करने के कौशल का अभाव। किसी भी बिज़नेस में अकेले आगे बढ़ना मुश्किल होता है। जो लोग दूसरों के साथ मिलकर, उन्हें साथ रखकर काम कर सकते हैं,
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कंपनियों में काम करनेवाले कर्मचारी सदस्यों को अक्सर इन चीजों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती है: मेरा वास्तविक काम क्या है, इसमें कौन से परिणाम लाने की ज़िम्मेदारी मेरी है? कंपनी के ग्राहकों के लिए मेरा काम कैसे
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अपनी प्रोडक्ट या सर्विस की खराब गुणवत्ता का असली मूल्य हम तब चुकाते हैं जब हमारी प्रोडक्ट और सर्विस की खराब गुणवत्ता से निराश होकर हमारा ग्राहक हमें छोड़कर चला जाता है और किसी ओर के पास से खरीद कर लेता है, जब हम
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अच्छी तरह से मैनेजमेंट करने के लिए, व्यक्ति को उसके काम की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी । काम को गहराई से समझना होगा। उस काम का कितना हिस्सा खुद करेंगे और कितना टीम के सदस्य करेंगे यह निर्धारित करना होगा। इस तरह के विभाजन
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आज का ग्राहक होशियार हो गया है। उसे समझाने के लिए, बड़ी-बड़ी बातें, मार्केटिंग का शोर या खाली वायदे काम नहीं आएंगे। उसे हमारी गुणवत्ता, क्षमता, निष्ठा, नैतिकता और ईमानदारी का प्रमाण देना होगा। नये जमाने के ग्राहक को उल्टा-सीधा समझाकर
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यदि कंपनी के मालिक कवालिटी-गुणवत्ता को प्राथमिकता नहीं देते हैं, तो कर्मचारियों से अच्छी गुणवत्ता की प्रोडक्ट या सर्विस मिलेगी, यह उम्मीद रखना व्यर्थ है। गुणवत्ता की शुरुआत कंपनी में ऊपर से ही होनी चाहिए। उसमें भी जब संजोग सुविधाजनक न
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किसी भी बिज़नेस में विभिन्न स्तरों पर कई विचार पैदा होते हैं। जिस विचार को मूर्त रूप देने की जिम्मेदारी लेनेवाला कोई मिलता हैं, वो ही विचार आकार लेता है । कंपनियों में जिम्मेदारी लेने की कमी के कारण अक्सर
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थोड़े ग्राहकों की बड़ी समस्याएं या कई ग्राहकों की छोटी समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यक हर चीज़ पर ध्यान केंद्रित करके लगातार छोटे-बड़े सुधार करते करते उनकी ज़रूरतों को निश्चित रूप से संतुष्ट करनेवाले बिज़नेस सफल होते ही
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जो बिकता है वही प्रोडक्ट है। बाकी सब कुछ सिर्फ एक विचार है जिसका स्वीकार करने को कोई भी तैयार नहीं है।
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सामान्य लोग एक सुव्यवस्थित सिस्टम में काम करके असामान्य परिणाम ला सकें ऐसी योजना मतलब सफल बिज़नेस ।
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सेलिंग और मार्केटिंग में क्या अंतर है? हमारे पास जो प्रोडक्ट मौजूद है, उसको किसी भी तरह से ग्राहक को पकड़ाकर पैसे कमाने का प्रयास मतलब सेलिंग। ग्राहक की आवश्यकता के अनुसार प्रोडक्ट बनाकर उसकी समस्या का समाधान हो,
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क्या हमारे पास एक बढ़िया प्रोडक्ट है, हमारा आइडिया मजबूत है इसलिए हमारा बिज़नेस चलना ही चाहिए? ज़रा रूकिए । सबसे पहले, क्या ग्राहक को इसकी जरूरत है? यदि उत्तर “नहीं” है, तो कुछ भी चाहे कितना ही बढ़िया या मजबूत हो, वह
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