एक बिज़नेस का विकास करना माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा होता है।
माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई में हर बड़े पड़ाव पर पहुंचने के बाद आगे बढ़ने की रणनीति में बदलाव करना होता है, क्योंकि ठंड बढ़ जाती है, हवा में ऑक्सीजन कम हो जाती है, जटिलताएं, समस्याएं, खतरे और परिणामों की गंभीरता बढ़ती जाती है।
बिज़नेस में भी ऐसा ही है। प्रत्येक पड़ाव पर ज़रूरत के अनुसार रणनीति बदलती रहे तो शिखर तक पहुंचना संभव हो पाता है।
और अगर पड़ाव की वास्तविकताओं के अनुसार रणनीति न बदले तो वही पड़ाव हमारी सारी संभावनाओं का शिखर बन जाता है।
माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई में हर बड़े पड़ाव पर पहुंचने के बाद आगे बढ़ने की रणनीति में बदलाव करना होता है, क्योंकि ठंड बढ़ जाती है, हवा में ऑक्सीजन कम हो जाती है, जटिलताएं, समस्याएं, खतरे और परिणामों की गंभीरता बढ़ती जाती है।
बिज़नेस में भी ऐसा ही है। प्रत्येक पड़ाव पर ज़रूरत के अनुसार रणनीति बदलती रहे तो शिखर तक पहुंचना संभव हो पाता है।
और अगर पड़ाव की वास्तविकताओं के अनुसार रणनीति न बदले तो वही पड़ाव हमारी सारी संभावनाओं का शिखर बन जाता है।
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